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सारधा घोटाले की जाँच प्रभावित करने के मामले में केंद्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी की बर्खास्तगी निश्चित रूप से मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है . इस कदम ने न केवल देश की जनता को यह भरोसा दिलाया है कि दोषी कितना भी ताकतवर क्यों न हो सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं चूकेगी . बल्कि देश के नौकरशाहों को भी स्पष्ट रूप से यह सन्देश दे दिया गया है कि अब सब कुछ नहीं चलेगा सरकारी अधिकारी अपने पदो के दुरूपयोग से बाज़ आये नहीं तो ऐसी और कार्रवाइयां हो सकती हैं सरकार की नियत एक पारदर्शी शासन देने की है जहाँ नौकरशाही को अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों के प्रति सतर्क रहते हुए पूरी निष्ठां और ईमानदारी के साथ काम करना होगा अन्यथा सरकार उन्हें दण्डित करने में जरा भी संकोच नहीं करेगी . कोई भी घपला या घोटाला बगैर सरकारी अधिकारियो की मिलीभगत के सम्भव नहीं हो सकता हैं यह बात व्यवस्था को थोड़ा बहुत भी जानने वाला व्यक्ति भलीभांति जनता हैं .. देश के नौकरशाह लम्बे समय से भ्रष्ट नेताओ के साथ गठजोड़ बनाकर बड़े बड़े गुल खिला रहे थे और अपने आपको हर मामले में बचा लेने में भी कामयाब हो जाते थे सम्भवता पहली बार इतने बड़े सरकारी अधिकारी पर इस प्रकार के मामले में कार्रवाई हुई है अन्यथा बड़े सरकारी अधिकारी जांचो को प्रभावित करना और मनचाही रिपोर्ट तैयार करवा लेना अपना विशेषाधिकार अधिकार समझते है और गाहे बगाहे अपने इस हुनर का लाभ अपने राजनैतिक आकाओ को भी उपलब्ध कराते है कोयला घोटाला की जाँच इसका प्रमुख उदाहरण है जिसमे जाँच करने वाले अधिकारी अपनी रिपोर्ट पीएमओ को न केवल दिखा कर बल्कि सरकार की इच्छा के अनुरूप उसे सम्पादित करवाते नजर आये थे . पूर्व गृह सचिव अनिल गोस्वामी भी पिछली सरकार की ही पसंद के अधिकारी थे और सत्ता परिवर्तन के बाद भी लगता हैं वो अपनी आदतो में परिवर्तन नहीं कर सके और सारधा घोटाले की जाँच में पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह की गिरफ़्तारी रुकवाने का प्रयास करने लगे . जिसके चलते उन्हें अपनी कुर्सी ही नहीं नौकरी भी गंवानी पड़ी …
निश्चित रूप से उनकी बर्खास्तगी सरकार और व्यवस्था के प्रति जनता में एक विश्वास कायम करने में अहम भूमिका निभाएगी
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