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हार से सबक

Apani Baat
Apani Baat
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा को निश्चित रूप से अपनी चुनावी रणनीति और संगठनात्मक निर्णयों की समीक्षा करनी होगी और हार के कारणों को तुरंत दूर करके आगामी चनावों में इसकी पुनरावृति न हो इसके प्रयास करने होंगे .. यदि ईमानदारी से इस हार का विश्लेषण पार्टी ने किया तो निश्चित रूप से उसे बहुत महत्वपूर्ण सबक सीखने को मिलेगा और मुझे लगता है कि वर्तमान पार्टी नेतृत्व इस अवसर को नहीं गवाँयेगा… भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली पराजय उसके वर्तमान नेतृत्व की तमाम राजनीतिक चूक का नतीजा है… सर्वप्रथम तो इस बात पर विचार करना चाहिए कि जो संगठन अपने बल पर लोकसभा चुनाव में पार्टी को केंद्र की सत्ता दिलाने में कामयाब रहा… वह दिल्ली के छोटे से चुनाव में बड़ी पराजय की पठकथा कैसे लिख गया ? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पार्टी द्वारा अपने पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओ की उपेक्षा और बाहरी चर्चित लोगो को उनके ऊपर थोपना रहा है यह एक भयानक भूल है जो हर बार सत्ता में आने पर पार्टी से होती आयी है .कि दूसरे दलों और राजनैतिक विचारधारा के लोगो को पार्टी में शामिल कर उन्हें सत्ता का सुख उपलब्ध कराना और अपने कार्यकर्ताओ को हीन समझ कर उन्हें केवल अनुशासन का पाठ पढ़ाना … जो उचित नहीं है… भाजपा नेतृत्व को उन लोगो को भी ध्यान में रखना चाहिए जो पहले भी कई बार दलबदल कर चुके है और उन्हें इसमें महारत हासिल है उत्तर प्रदेश में सन २००२ के बाद से धीरे धीरे सभी दलबदलुओं ने पार्टी से किनारा करना शुरू कर दिया था और अगले दस बारह सालो में सन २०१३ तक पार्टी दलबदलुओं से लगभग खाली हो गयी थी सिर्फ विचारधारा से जुड़ा कार्यकर्त्ता और नेता ही पार्टी में रह गए थे … लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी का बढ़ता जनाधार देखकर तमाम लोग दलबदल कर भाजपा में शामिल हुए और बहुतो को तो लोकसभा पहुँचने का टिकट भी पार्टी ने दिया और वो चुनाव जीतकर सांसद भी बन गए निश्चित रूप से पार्टी के इस निर्णय से तमाम कार्यकर्ताओ को पीड़ा भी पहुंची होगी लेकिन मोदी जी के आकर्षण और विचारधारा के प्रति निष्ठा ने उसे पार्टी के लिए काम करने की प्रेरणा दी और बड़ी संख्या में ऐसे लोग संसद पहुँचने में सफल रहे जो किसी भी अन्य पार्टी के टिकट पर चुनाव नहीं जीत सकते थे उस समय इन अवसरवादियों को टिकट देना सही नहीं था क्योकि चुनाव बाद के आंकड़े यह स्पष्ट करते है कि पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता इन दलबदलुओं के स्थान पर चुनाव लड़ता तो जीत हासिल करता ….लेकिन अंत भला तो सब भला वाली कहावत चरितार्थ हुई तमाम चाडक्यो की जय जयकार होनी शुरू हो गयी…कुछ लोग तो ऐसा खाका खीचने लगे मानो इन दलबदलुओं के सहारे ही पार्टी जीती हो और पार्टी भी उसी सिद्धांत पर आगे बढ़ी और दिल्ली में हार गयी.. अभी हार का कारण तलाशा जाना बाकी है मुझे लगता है कि यह महज खानापूर्ति नहीं होगी …. भाजपा को विचारधारा आधारित कार्यकर्ताओ और अवसरवादी नेताओ में अंतर करना ही होगा तभी वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी… कुछ लोग हिंदुत्व के सिर इस हार का ठीकरा फोड़ने का प्रयास कर रहे है जो भाजपा को कांग्रेस का विकृत स्वरूप बनाना चाहते है … इसके अलावा भूमि अधिग्रहण बिल , कालाधन , धारा ३७० और आर्थिक नीतियों में व्यापक परिवर्तन की उम्मीद करने वाला मतदाता भी निराश हो रहा है… जिसपर भाजपा को पुनः आत्ममंथन करना होगा तभी आम जनता और कार्यकर्ताओ की बीच उसकी विश्वसनीयता कायम रह सकेगी … भारतीय जनता पार्टी को इस पर भी विचार करना होगा की वह एक विचारधारा आधारित पार्टी की पहचान को बनाये रखना चाहती है या केवल सत्ता की लिए प्रवाह के साथ बह जाने वाला राजनैतिक दल बनना चाहती जहाँ किसी व्यक्ति का चेहरा हर विचार और सिद्धांत से बड़ा हो जाता है.

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